आनुवंशिकी और पादप प्रजनन अनुसंधान

संस्थान में बंसी, शरबती और खपली गेहूं की उच्च विकासशील रोग प्रतिरोधी किस्में उपज करने के उद्देश्य से गेहूं अनुसंधान किया जाता है। संस्थान मे असिंचित और सिंचाई के अधार पर प्रयद्वीपीय क्षेत्र तथा उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र के लिए अब तक १० बेहतर गेन्हु की प्रजातिया  (५ बंसी, ४ शरबती और १ खपली) विकसित की है।यु जी 99 के साथ साथ अन्य रोग जैसे भूरा रुतुआ, काला रुतुआ और पत्ता ब्लायिट प्रतिरोधी गेहू की किस्मे तैयार करने पर अनुसन्धान जरी है।प्रजनक बीज उत्पादन:भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद / केंद्र या राज्य सरकार द्वारा सौपे गये कार्यक्रम के रूप में विभिन्न गेहूं किस्मों के (एमएसीएस 2496, एमएसीएस 3125, एमएसीएस 6222, एमएसीएस 6478, एमएसीएस 2971, एमएसीएस 6145 & HD 2189) प्रजनक बीज विभिन्न एजेंसियों को उपलब्ध कारये जाते है ।
किसानों के क्षेत्र में खेती के लिए जारी गेहूं की किस्में:

किस्में रिलीज के वर्ष क्षेत्र सिफारिश
बंसी गेहूं  
एम सी एस 9

1978

प्रायद्वीपीय क्षेत्र वर्षा आधारित
एम सी एस 1967

1987

प्रायद्वीपीय क्षेत्र वर्षा आधारित
एम सी एस 2694

1997

प्रायद्वीपीय क्षेत्र सिंचाई, उच्च प्रजनन
एम सी एस 2846

1998

प्रायद्वीपीय क्षेत्र सिंचाई, उच्च प्रजनन
एम सी एस 3125

2003

प्रायद्वीपीय क्षेत्र सिंचाई, उच्च प्रजनन
शरबती गेहूं  
एम सी एस 2496

1991

प्रायद्वीपीय क्षेत्र सिंचाई, उच्च प्रजनन
एम सी एस 6145

2005

उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र वर्षा आधारित
एम सी एस 6222

2010

प्रायद्वीपीय क्षेत्र सिंचाई, उच्च प्रजनन
एम सी एस 6478

2014

प्रायद्वीपीय क्षेत्र सिंचाई, उच्च प्रजनन
खपली गेहूं  
एम सी एस 2971

2009

प्रायद्वीपीय क्षेत्र सिंचाई, उच्च प्रजनन

गेहूं की किस्में की मुख्य विशेषताएं:

एमएसीएस 2496प्रायद्वीपीय क्षेत्र में समय पर बोया सिंचित स्थितियों के लिए उपयुक्त
अर्ध बौना उच्चतम उपज रोटी गेहूं किस्म
औसत उपज 40-50 क्विंटल / हेक्टेयर । अधिकतम संभावित उपज 70-75 क्विंटल / हेक्टेयर
उत्कृष्ट चपाती और रोटी बनाने की गुणवत्ता
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एमएसीएस 3125

  • समय परबोया सिंचित स्थितियों के लिए उपयुक्त
  • उच उत्पादन वाली शरबती गेन्हु के किस्मो से भी जादा उपज
  • पत्ती रुतुआ, ब्लाइट और Ug99 के लिए प्रतिरोधी
  • औसत उपज 45-50 क्विंटल / हेक्टेयर
  • अधिकतम उपज 70-75 क्विंटल / हेक्टेय
  • सूजी (रवा) और पास्ता बनाने के लिए उपयु
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एमएसीएस2971

  • मय पर-बोया सिंचित स्थितियों के लिए जारी
  • खपली चेक से उपज में अधिक
  • त्ती और Ug99 सहित काला रुतुआ के लिए प्रतिरोधी
  • औसत उपज 45-50 क्विंटल / हेक्टेयर
  • सेंवई, दलिया बनाने के लिए उपयुक्त
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एमएसीएस 6222

  • समय पर-बोया सिंचित स्थितियों के लिए जारी
  • औसत उपज 45-50 क्विंटल / हेक्टेयर
  • अधिकतम उपज 65 क्विंटल / हेक्टेय
  • पत्ती और Ug99 सहित काला रुतुआ के लिए प्रतिरो
  • अच्छा रोटी बनाने की गुणवत्ता
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एमएसीएस 6478

  • समय पर-बोया सिंचित स्थितियों के लिए जारी
  • औसत उपज 45-50 क्विंटल / हेक्टेयर
  • अधिकतम उपज 65.7 क्विंटल / हेक्टेयर
  • पत्ती और काला रुतुआ के लिए प्रतिरो
  • अच्छा रोटी बनाने की गुणवत्ता
  • उत्कृष्ट चपाती बनाने की गुणवत्ता और रोटी बनाने की गुणव
  • उच्च पोषक तत्वों की गुणवत्ता और बोल्ड अना
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गेहूं में रोग प्रतिरोध का विकास:

पत्ता रुतुआ प्रतिरोध मे सुधार और युजी ९९ के सम्भवित उपगम के प्रतिरोध मे गेन्हु प्रजातिया विकसीत करने का प्रयास जरी है। फसल मे गेन्हु प्रविष्तियो की रोग प्रतिरोधी, मुख्यता, रुतुओ का परिक्षण के लिए संस्थान में अछी सुविधाए प्रस्थापित की है।

संस्थान में जादा उपज देनेवाली, अधिकतम तैल मात्रा, फली बिखरने प्रतिरोध, कीट और रोग प्रतिरोध प्रजातियाँ विकसित करने हेतु अनुसन्धान कार्य जारी है।

इस केंद्र मे विकसित हुई सोयाबीन प्रजातियाँ महाराष्ट्र राज्य और अन्य राज्योमे भी लोकप्रिय रही है। महाराष्ट्र मे सोयाबीन की खेती १९८० मे प्रारम्भ होने के बाद १९९२ मे २.७४ हैक्टर से बढ़कर सन २०१३ मे ३६ लाख हैक्टर तक पहुँच गई है। इस मे ए॰आर॰आय॰ (एम॰ए॰सी॰एस॰) ने विकसित की हुई प्रजातियोंका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। मध्य प्रदेश के बाद, महाराष्ट्र राज्य क्षेत्र और उत्पादन के अनुसार दूसरा और उत्पादकता मे पहला राज्य है।

प्रजनक बीज उत्पादन: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद / केंद्रीय या राज्य सरकार द्वारा सौपे गये कार्यक्रम के रूप में विभिन्न सोयाबीन किस्मों के (एमएसीएस 450, एमएसीएस 1188 और एमएसीएस 1281) प्रजनक बीज विभिन्न एजेंसियों को उपलब्ध कारये जाते है ।

इस संस्थान मे किये गए प्रजनन प्रयास के कारण सोयाबीन की निम्न सात प्रजातियाँ किसानोंकों उगाने हेतू प्रसारित हुई है।

मोनेटा: यह शीघ्र पकनेवाली (८० से ८५ दिन) और विभिन्न मोसमी स्थिती के लिए अनुकूल

उपज स्तर २० से २५ क्विंटल प्रति हैक्टर

१९७८ मे अमरीका के जर्मप्लाज्म ईसी २५८७ से पहचान की गई।

एमएसीएस १३: उच्चतम अनुकूलनीय प्रजाति, सन १९८४ मे विकसित,

मध्यम देर परिपक्वता (९५ से १०० दिन), फली बिखरने प्रतिरोधी,

उपज स्तर २० से २५ क्विंटल प्रति हैक्टर, सन १९८६ से १९९२ तक

महाराष्ट्र राज्य मे ७५ प्रतिशत क्षेत्रमे उपज

एमएसीएस ५७: शीघ्र पकनेवाली (८५ से ९० दिन), प्रकाश तथा ताप असंवेदनशील,

गर्मिया मोसम मे उपयुक्त पहली प्रजाति, आंतर फसल के लिए उपयुक्त,

उपज स्तर २० से २५ क्विंटल प्रति हैक्टर

एमएसीएस ५८: सन १९८९ मे महाराष्ट्र एवं मध्य भारत मे खेती के लिए प्रसारित, उच्च तैल

की मात्रा (२१ से २२ प्रतिशत), मध्यम परिपक्वता (९० से ९५ दिन), उच्च

उपज स्तर (किसान प्रदर्शनी मे ४५ क्विंटल प्रति हैक्टर का रेकॉर्ड)

एमएसीएस १२४: सन १९९२ मे दक्षिणी क्षेत्र के लिए प्रसारित, अधिकतर फलियाँ तीन

दानोंवाली, मध्यम परिपक्वता (९५ से १०० दिन), उच्च उपज स्तर,

टोफू बनाने के लिए उपयुक्त

एमएसीएस ४५०: सन १९९९ मे दक्षिणी क्षेत्र के लिए प्रसारित, उच्च बीज गुणवत्ता,

मध्यम परिपक्वता (९० से ९५ दिन), सोयाबीन रतुआ रोग के लिए मध्यम

प्रतिरोधी, उपज स्तर २५ से ३० क्विंटल प्रति हैक्टर

एमएसीएस ११८८: सन २०१३ मे दक्षिणी क्षेत्र के लिए प्रसारित, मध्यम परिपक्वता

(९५ से १०० दिन), राइज़ोक्टोनिया ब्लाइट, कोयला क्षय आदि रोगोंके

लिए तथा प्रमुख कीट प्रतिरोधी, उच्च उपज स्तर (दक्षिणी क्षेत्र परीक्षणोंमे

४१ क्विंटल प्रति हैक्टर अधिकतम उपजक्षमता)

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सोयाबीन कृषि विज्ञान

एआरआय में सोयाबीन पर कृषि विज्ञान अनुसंधान में समन्वित प्रयोगों का आयोजन तथा विशिष्ट समस्याओं पर और विभिन्न कृषि पहलुओंपर प्रयोगों का आयोजन भी शामिल है।

सोयाबीन की खेती के लिए के, प्रयोगात्मक परिणामों के आधार पर विभिन्न प्रथाए विकसित कर उनकी सिफारिश की गयी है।

सोयाबीन कीट विज्ञान

अनुसंधान खेत पर निश्चित क्षेत्र सर्वेक्षण और उत्पादन उन्मुख सर्वेक्षण के अनुसार निम्नलिखित बड़ी और छोटी कीट का प्रादुर्भाव पाया जाता है।

प्रमुख की: 1. तनामक्खी 2. पत्ता मायनर 3. तमाकू इल्ली 4। बिहार केशयुक्त इल्ली 5. पत्ता रोलर 6. अर्ध कुंडलक इल्ली

निम्न प्रमुख की: 1. जसीड 2. अफीड 3. सफ़ेद मक्खी 4. सफ़ेद वीविल 5॰ सर्पिल पत्ता मायनर 6. नील बीटल 7. गरदल बीटल 8. फली बोरर

निम्नलिखित पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कीट प्रबंधन मॉड्यूल विकसित करने पर एकीकृत तरीके से प्रयास कर रहे हैं:

1. अनुसंधान क्षेत्र एवं किसान के खेतों पर हानिकारक कीट का मौसमी घटनाओं का सर्वेक्षण।

2. विभिन्न केन्द्रों पर विकसित सोयाबीन लाइनों की प्रमुख कीट के खिलाफ प्रतिरोध के लिए

जाँच

3. प्रमुख कीटों का प्रबंधन करने के लिए विभिन्न नियंत्रण उपायों का एकीकरण

4. प्रमुख कीट के खिलाफ सिफारिश कीये गए एवं विकसित कीटनाशकों के मूल्यांकन।

परियोजना में अंगूर के जंगली प्रजातियों का संग्रह और मूल्यांकन तथा प्रजनन के माध्यम से जैविक और अजैविक तनाव सहिष्णुता, रोग प्रतिरोध के लिए संकरण और रूट्स्टौक के लिए उनकी उपयुक्तता इत्यादि उपयोग शामिल है।इनके अलावा, ए.आर.आय. में फल की गुणवत्ता, किशमिश (ए आर आय 302), रस और वाईन बनाने के लिए उपयुक्त (ए आर आय 27) अंगूर किस्में विकसित की है। ‘हायब्रिड – 516′, यह संस्थानद्वारा विकसित एक संकर ‘पंजाब-एमएसीएस- पर्पल’ के रूप में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा रस और वाईन बनाने के लिए रिलीज़ की गई है।
एआरआय 516 (पंजाबएमएसीएस पर्पल)

उद्देश्य टेबल, किशमिष, रस और वाईन
परिपक्वता अवधि जल्दी, छंटाई के 100-110 दिन बाद
गुच्छ आकार लम्बा
गुच्छ परिपक्वता समान
बेरी के आकार गोलाकार
बेरी के रंग नीलाकाला
रस स्वाद मृगमदी, सुखद
100 बेरी वजन 150 – 190 ग्राम
टी. एस. एस. 22 to 24 0 ब्रिक्स
अम्लता 0.4 – 0.6 %
रस 60 to 70 %
बीज संख्या 0- 1 (अल्प विकसित)
रोग प्रतिरोध पाउडरी और डानी मीलड्यू के लिये मध्यम प्रतिरोधक, अन्थ्रकनोज़ प्रतिरोधक
उपज 15-20 टन/हे.
research-grapes1

एआरआय-302

उद्देश्य टेबल
परिपक्वता अवधि मध्यम अवधि (140 दिन)
गुच्छ परिपक्वता समान
बेरी का आकार दीर्घवृत्ताकार
बेरी का रंग सुनहरा पीला
रस का रंग फिका
टी. एस. एस. 22 to 24 0 ब्रिक्स
रस 70 to 75 %
बीज संख्या बीजरहित
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एआरआय-27

उद्देश्य रस और वाईन के लिये
परिपक्वता अवधि मध्यम अवधि (140 दिन)
गुच्छ आकार शंक्वाकार
गुच्छ परिपक्वता समान
बेरी का आकार गोलाकार
बेरी का रंग नीलाकाला
रस का रंग गहरा लाल
100 बेरी वजन 200 to 300 ग्राम
टी. एस. एस. 18 to 200 0 ब्रिक्स
रस 70 to 75 %
बीज संख्या 1-2
रोग प्रतिरोध पाउडरी और डानी मीलड्यू के लिये मध्यम प्रतिरोधक, अन्थ्रकनोज़ प्रतिरोधक
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फसल सुधार में रेन्विय चिन्हको (मार्कर) का उपयोगः

रेन्विय चिन्हकों का उपयोग कर गेहूँ, सोयाबीन तथा अंगुर इन फसलों के प्रजनन में सहयोग पर ध्यान दिया जा रहा है । इन फसलों के बहतर किस्मों के विकास के लिए चिन्हक सहायता प्रजनन का अंतिम ध्येय सामने रख कर अनुवंशिक विविधता विश्लेषण, डीएनए फिंगरप्रिंटिंग, रोग प्रतिरोध तथा अंत उपयोग गुणवत्ता लक्षण इन मुद्दों पर मुख्य अनुसंधान किया जा रहा है ।

प्रजातियों के सही पहचान के लिए रेन्विय चिन्हको द्वारा अंगूर की किस्मों का डीएनए रेखाचित्रण पूरा हो चूका हैं, जिस का उपयोग बीजरहित अंगुर की किस्मे प्राप्त करने में किया जा रहा है । गेहूँ में ग्लूटेन शक्ती, पीला रंग सामग्री, पत्ता रुतुआ प्रतिरोधी जनुक तथा कृषि लक्षणों के लिए रेन्विय चिन्हको की पहचान की गई हैं । रुतुआ प्रतिरोध, पत्ता ब्लाईट प्रतिरोध, कोलीओप्टाईल लंबाई, जड मापदंडो और बौनेपन के जनुकों के रेन्विय चिन्हकों के पहचान और विकास कार्य प्रगति पर है ।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग के त्वरीत फसल सुधार योजना के अंतर्गत प्रायव्दिपीय क्षेत्र के एनआय 5439 और एमएसीएस 2496 में दाना प्रथिन सामग्री, ग्लुटेन शक्ती का विकास तथा प्रायव्दिपीय क्षेत्र के एमएसीएस 3125 और एचआय 8498 में दाना प्रथिन तथा पीला रंग सामग्री के विकास के लिए मार्कर सहायता प्रजनन का उपयोग शुरु किया गया हैं । जैविक तनाव प्रतिरोध किस्मों के विकसन के लिए पत्ता रुतुआ प्रतिरोध जनुक तथा काला रुतुआ प्रतिरोधी जनुकां का निगमन जरी हैं । कुनीटझ ट्रिन्सीन अवरोध मुक्त सोयाबीन प्रजातियों के विकास के लिए मार्कर सहायता प्रजनन का उपयोग जारी है । बहुतांश लक्षणों के लिए संबंधित इंट्ररोग्रेस्ड लाईन का क्षेत्र परीक्षण किया जा रहा हैं ।

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