आनुवंशिकी और पादप प्रजनन इतिहास

वर्ष1954 से स्वर्गीय डॉ.गो बा देवडीकर ने गेहूँपर अनुसंधान शुरू किया जिसे भारतीय कृषी अनुसंधान परिषद ने प्रायोजितकिया था। इस से बंसी और अन्य टेट्राप्लोइडप्रजातियों के आनुवंशिकी और कोशिका विज्ञान से जुड़ी जानकारी प्राप्त हुई। उस समय बंसी गेहूँ वर्षा सिंचित होने के कारण ऊंचे क़िस्मों का चयन किया जाता था। वर्ष 1974 से इस अनुसंधान प्रायोजना को अखिल भारतीय समन्वित गेहूँ सुधार कार्यक्रम में शामिल किया गया।

सोयाबीन अनुसंधान के लिए भारतीय कृषी अनुसंधान परिषद ने संस्थान को वर्ष 1968मेंशामिल किया। शुरुआत में जर्मप्लाज्म का संकलन करने पर ज़ोर दिया गया और दक्षिण विभाग के मौसम को अनुकूल जीनोटाइपों को जाँचा गया। इसके पश्चात जादा उपज देनेवाली, अधिकतम तेलमात्रावाली, फली बिखरना प्रतिरोधी,रोग प्रतिरोधीप्रजातियाँ विकसित करने का कार्य जारी है।

संस्थान में भारतीय कृषी अनुसंधान परिषद के अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत अंगूर सुधार कार्यक्रम भी जारी है।

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प्रोफेसर जी.बी. देवडीकर (माजी निदेशक, एम.ए.सी.एस 1960-1980)

प्रोफेसर जी.बी. देवडीकर साथ डॉ नॉर्मन ई बोरलॉग, नोबेल पुरस्कार विजेता, CIMMYT